भूमिका – सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी: एकेश्वरवाद, समानता और सेवा का संदेश:-
सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव जी थे। वे केवल एक धार्मिक ही नहीं बल्कि एक ऐसे संत थे जिन्होंने मानवता के लिए नया दृष्टिकोण दिया। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है, और वह हर व्यक्ति के अन्दर विद्यमान है। नानक जाति, धर्म, ऊँच-नीच और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और सबको प्रेम, समानता और सेवा का संदेश दिया। गुरु नानक देव जी का जीवन सादगी, सत्य और करुणा का उदाहरण है। उनकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सैकड़ों साल पहले थीं। उन्होंने कहा था — “ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान; सब मनुष्य हैं।” उनके विचारों ने समाज में फैल रही कुरीतियों और अंधविश्वास को चुनौती दी। उन्होंने लोगों को सिखाया कि भक्ति केवल पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा में है।
जन्म और बाल्यकाल – तलवंडी/ननकाना साहिब, परिवार और प्रारंभिक चमत्कार:-
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को रावी नदी के किनारे बसे तलवंडी नामक गाँव में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था। पिता एक राजस्व अधिकारी थे और परिवार एक सामान्य हिंदू परिवार था। गुरु नानक बचपन से ही असाधारण थे। जब दूसरे बच्चे खेल-कूद में लगते थे, तब वे ईश्वर और जीवन के अर्थ पर सोचते रहते थे। कहा जाता है कि बचपन में ही वे अंधविश्वासों से प्रश्न करने लगे थे। एक बार जब उनके पिता ने उन्हें गाय चराने भेजा, तो वे ध्यान में इतने लीन हो गए कि गायें खेतों में चली गईं। लोग शिकायत लेकर आए, लेकिन जब खेत देखने गए, तो वहाँ की फसल पहले से भी ज्यादा हरी थी। गाँव के लोग इसे एक चमत्कार मानने लगे।
शिक्षा और ज्ञान की खोज – संस्कृत-फ़ारसी अध्ययन, एकेश्वरवाद और सत्य की तलाश:-
गुरु नानक की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। वे बहुत तेज़ विद्यार्थी थे और अल्प आयु में ही संस्कृत, फारसी और अरबी भाषा सीख गए। कहा जाता है कि जब उन्हें मौलवी के पास अरबी सीखने भेजा गया, तो उन्होंने पहले ही दिन शिक्षक से पूछा, “मौलवी साहब, यह जो शब्द हम पढ़ रहे हैं, क्या यह हमें सच्चाई तक पहुँचाने में मदद करेगा?” शिक्षक चुप रह गए।
बचपन से ही उनके अंदर ज्ञान की तीव्र प्यास थी। वे अक्सर कहते, “अगर ज्ञान से प्रेम नहीं बढ़ता, तो वह केवल शब्दों का खेल है।” उन्होंने सभी धर्मों और पंथों का अध्ययन किया। उनके भीतर यह सवाल बार-बार उठता था — “मनुष्य जन्म क्यों लेता है?” और “सच्चा धर्म क्या है?” उनकी इस जिज्ञासा ने उन्हें जीवन के गहरे अर्थों तक पहुँचाया। वे यह समझ गए कि ईश्वर किसी एक मंदिर, मस्जिद या धर्म में नहीं, बल्कि हर प्राणी के भीतर है।
विवाह और पारिवारिक जीवन – सुलखनी देवी, श्रीचंद-लखमीचंद और ‘सच्चा सौदा’:-
गुरु नानक देव जी का विवाह सुलखनी देवी से हुआ था, जो बटाला नामक स्थान की निवासी थीं। उनसे उनके दो पुत्र हुए — श्रीचंद और लखमीचंद। हालांकि वे गृहस्थ जीवन में थे, परन्तु उनका मन ईश्वर और मानवता की सेवा में अधिक रहता था।
कहते हैं कि एक बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें व्यापार करने की सलाह दी। उन्होंने कुछ सामान लिया और व्यापार के लिए निकले, लेकिन रास्ते में उन्होंने सारे पैसे भूखों और साधुओं को भोजन कराने में खर्च कर दिए। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने व्यापार क्यों नहीं किया, तो उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “मैंने सबसे बड़ा लाभ कमाया — किसी का पेट भरना।” इस घटना को “सच्चा सौदा” कहा गया और यह उनके जीवन की दिशा तय करने वाली घटना साबित हुई।
आध्यात्मिक जागरण – बेईन नदी की कथा और “ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान”:-
गुरु नानक देव जी के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब वे लगभग 30 वर्ष के थे। एक दिन वे सुबह-सुबह स्नान करने बेईन नदी गए और वहाँ कुछ देर ध्यान में बैठ गए। तीन दिन तक वे वापस नहीं लौटे। लोगों ने समझा कि वे डूब गए हैं। लेकिन तीसरे दिन वे लौटे तो उनका चेहरा तेज़ और आँखों में एक नई चमक थी। वापस आने पर उन्होंने केवल इतना कहा — “ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान।” लोगों ने पूछा, “इसका क्या अर्थ है?” गुरु नानक ने कहा, “हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, हमारे बीच कोई भेद नहीं।”
उस दिन से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। उन्होंने अपने आभ्यंतर अनुभव को जीवन का मिशन बना लिया। अब वे समाज को प्रेम, एकता और सत्य का संदेश देने के लिए निकल पड़े।
प्रमुख शिक्षाएँ – नाम जपो, किरत करो, वंड छको:-
गुरु नानक देव जी ने जीवनभर यही सिखाया कि ईश्वर एक है और हर व्यक्ति में वही ईश्वर वास करता है। उन्होंने तीन मुख्य सिद्धांत दिए, जिन्हें सिख धर्म का आधार माना जाता है —
- नाम जपो– हर समय ईश्वर के नाम का स्मरण करो।
- किरत करो – ईमानदारी और परिश्रम से जीवन यापन करो।
- वंड छको – जो भी कमाओ, उसका एक हिस्सा दूसरों के साथ बाँटो।
उन्होंने लोगों को बताया कि केवल पूजा करने से नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा करने से ही ईश्वर की सच्ची उपासना होती है। उन्होंने कहा, “ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता मंदिरों और मस्जिदों से नहीं, बल्कि सच्चे दिल और अच्छे कर्मों से होकर जाता है।”
उनकी शिक्षाओं का सबसे सुंदर सार उनके प्रसिद्ध भजन में झलकता है —
“सबना जीआ का इक दाता, सो मैं विसर न जाई।”
(सभी जीवों का एक ही दाता है, उसे मैं कभी न भूलूँ।)
यात्राएँ – उदासियाँ (चार प्रमुख यात्राएँ) भारत से मक्का-मदीना तक:-
गुरु नानक देव जी ने अपना जीवन लोगों को जागरूक करने में लगा दिया। उन्होंने चार बड़ी यात्राएँ कीं, जिन्हें “उदासियाँ” कहा जाता है। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, तिब्बत, श्रीलंका और अरब देशों तक भ्रमण किया। हर जगह उन्होंने एक ही संदेश दिया — “सभी धर्म सच्चे हैं, यदि उनमें प्रेम और करुणा है।” वे राजा-महाराजाओं से भी मिले और आम जनता से भी। उन्होंने सभी को समान दृष्टि से देखा। कहा जाता है कि वे हर जगह गीतों और भजनों के माध्यम से अपना संदेश देते थे। उनके साथी भाई मरदाना रबाब बजाते और गुरु नानक ईश्वर के नाम में लीन होकर भजन गाते। उनके भजनों में केवल संगीत नहीं, बल्कि सच्चाई की आत्मा बसती थी। उन्होंने बनारस, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, मक्का, मदीना और लाहौर जैसे स्थानों का भ्रमण किया। मक्का में जब वे सोए तो उनके पैर काबा की दिशा में थे। जब एक व्यक्ति ने उन्हें टोकते हुए कहा कि “यह काबा की ओर पैर मत फैलाओ,” तो गुरु नानक ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो फिर मेरे पैर उस दिशा में कर दो जहाँ ईश्वर नहीं है।”
कहा जाता है कि जब उनके पैर घुमाए गए, तो काबा भी घूम गया। इस घटना ने सबको यह सिखाया कि ईश्वर हर दिशा में है।
सामाजिक सुधार और समानता का संदेश – जाति प्रथा, अंधविश्वास और नारी सम्मान पर दृष्टि:-
गुरु नानक देव जी ने समाज में व्याप्त कई बुराइयों पर सवाल उठाया। उन्होंने जाति व्यवस्था, ऊँच-नीच, धार्मिक अंधविश्वास और महिलाओं के साथ भेदभाव का विरोध किया।
उन्होंने कहा, “स्त्री पुरुष से नीची नहीं, वह तो जन्म देने वाली है।” उन्होंने समाज को बताया कि सच्चा धर्म किसी एक किताब या पूजा विधि में नहीं, बल्कि इंसानियत में है। उनका विचार था कि अगर इंसान अपने कर्मों को अच्छा बना ले, तो वह किसी भी धर्म के नियमों से ऊँचा है। वे कहते थे, “सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों में भी ईश्वर को देखे।”
यात्राओं का प्रभाव और समाज में परिवर्तन – प्रेम, करुणा और सेवा की राह:-
गुरु नानक देव जी की यात्राओं ने न केवल धार्मिक जगत को हिला दिया, बल्कि समाज में सोचने का नया तरीका भी जन्म दिया। उन्होंने लोगों को यह समझाया कि सच्ची पूजा किसी खास जगह या भाषा में नहीं होती, बल्कि अच्छे कर्मों में होती है। उन्होंने कहा, “यदि तुम्हारे मन में प्रेम है, तो वही सबसे बड़ी आराधना है।” उनकी यात्राओं का प्रभाव इस बात से समझा जा सकता है कि हर जगह जहाँ वे गए, वहाँ लोगों ने अपने जीवन की दिशा बदल दी। वे केवल उपदेश नहीं देते थे, बल्कि अपने जीवन से उदाहरण प्रस्तुत करते थे। उन्होंने राजा-महाराजाओं को भी बताया कि सत्ता का असली अर्थ जनता की सेवा में है।
गुरु नानक देव जी ने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच प्रेम और भाईचारे की भावना पैदा की। उन्होंने दोनों धर्मों की अच्छाइयों को अपनाया और कहा, “सत्य एक है, बस लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।” उन्होंने सभी लोगों को यह सिखाया कि ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता दूसरों के प्रति करुणा और सेवा से होकर गुजरता है।
सिख धर्म की नींव – संगत, पंगत और लंगर की परंपरा:-
गुरु नानक देव जी के विचारों ने धीरे-धीरे एक नए पंथ की नींव रखी — सिख धर्म। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि धर्म केवल पूजा का साधन नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। उन्होंने “संगत” और “पंगत” की परंपरा शुरू की — जहाँ सभी लोग मिलकर एक साथ बैठते, ईश्वर का स्मरण करते और फिर बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करते थे।
यह परंपरा आज भी “लंगर” के रूप में सिख धर्म की पहचान है। लंगर में अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, सब एक साथ बैठते हैं, जिससे समानता और सेवा की भावना जागती है। गुरु नानक देव जी ने कहा था, “जिस दिन मनुष्य दूसरों की भूख को अपनी भूख समझेगा, उसी दिन सच्चे धर्म का आरंभ होगा।” उन्होंने गुरुमुखी लिपि के उपयोग को भी बढ़ावा दिया ताकि हर व्यक्ति धर्मग्रंथों को अपनी भाषा में समझ सके। उन्होंने कठिन संस्कृत या अरबी के बजाय सरल पंजाबी भाषा में अपने उपदेश दिए, ताकि हर वर्ग का व्यक्ति उसे आसानी से समझ सके।
गुरुग्रंथ साहिब की शुरुआत – गुरु वाणी और संत कवियों की बाणी का संकलन:-
गुरु नानक देव जी ने अपने भजनों और शिक्षाओं के माध्यम से जो विचार व्यक्त किए, उन्हें बाद में “गुरुग्रंथ साहिब” में संकलित किया गया। यह ग्रंथ सिख धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है। इसमें गुरु नानक के अलावा अन्य गुरुओं और संत कवियों की वाणियाँ भी शामिल हैं — जैसे कबीर, रैदास और नामदेव।
गुरु नानक का उद्देश्य यह था कि धर्म किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि सबका हो। उन्होंने कहा, “सभी मनुष्यों में वही प्रकाश है, कोई छोटा या बड़ा नहीं।” उनके अनुसार, धर्म का मतलब यह नहीं कि हम एक-दूसरे से अलग हो जाएँ, बल्कि यह है कि हम एक-दूसरे के भीतर ईश्वर को देखें। उनकी वाणी में गहरी सादगी और आत्मा की सच्चाई है। जैसे उन्होंने कहा —
“जो प्रेम का मार्ग चलेगा, वही परमात्मा को पाएगा।”
उनकी यह सीख आज भी लोगों को एकता, प्रेम और भक्ति की राह दिखाती है।
करतारपुर साहिब और अंतिम वर्ष – खेती, सेवा और समभाव का समुदाय:-
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष करतारपुर नामक स्थान पर बिताए, जो आज पाकिस्तान में है। यहाँ उन्होंने एक साधारण परंतु अनुशासित जीवन का उदाहरण प्रस्तुत किया। वे हर सुबह ध्यान करते, फिर खेती करते और दोपहर को लोगों को सत्संग सुनाते।
उन्होंने अपने अनुयायियों को यही सिखाया कि जीवन में ईमानदारी और सेवा सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा, “सच्चा धर्म वही है जो दूसरों के काम आए।” करतारपुर में उन्होंने अपने शिष्यों के बीच एक समान समाज की नींव रखी, जहाँ किसी जाति या धर्म का भेद नहीं था।
23 साल की निरंतर सेवा और यात्राओं के बाद, 22 सितंबर 1539 को गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में देह त्याग दी। उनकी मृत्यु के बाद हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों के बीच उनके संस्कार को लेकर मतभेद हुआ — कोई उन्हें दफनाना चाहता था, तो कोई जलाना। लेकिन जब अगले दिन लोग देखने गए, तो वहाँ केवल फूल मिले। दोनों पक्षों ने वे फूल बाँट लिए और आधे दफनाए गए, आधे जलाए गए। इस घटना ने उनके जीवन की शिक्षा को और भी मजबूत बना दिया — “हम सब एक ही मिट्टी के बने हैं।”
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार – समानता, सेवा और नाम सिमरन:-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ आज भी जीवन का मार्गदर्शन करती हैं। उन्होंने जो सिखाया, वह केवल धार्मिक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनदर्शन है। उनके कुछ प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
- समानता का संदेश – उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर किसी भी भेदभाव का विरोध किया।
- सच्चाई और ईमानदारी – हर व्यक्ति को अपने कर्मों में सत्यनिष्ठ रहना चाहिए।
- सेवा का भाव – दूसरों की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है।
- स्त्रियों का सम्मान – उन्होंने कहा कि स्त्री पूजनीय है, क्योंकि वही जीवन का स्रोत है।
- नाम सिमरन (ईश्वर का स्मरण) – मन और आत्मा को शांत रखने के लिए ईश्वर के नाम का जप सबसे जरूरी है।
उनकी ये शिक्षाएँ आज भी हर धर्म और समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
गुरु नानक देव जी का प्रभाव और विरासत – गुरपुरब, लंगर और वैश्विक संदेश:-
गुरु नानक देव जी का प्रभाव केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में फैला। उन्होंने जो संदेश दिया, वह मानवता के लिए था, न कि किसी एक धर्म के लिए। उनके विचारों ने समाज के सोचने का तरीका बदल दिया।
सिख धर्म के नौ अन्य गुरुओं ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया और अंततः यह धर्म विश्व के प्रमुख पंथों में से एक बन गया। आज भी गुरु नानक देव जी का जन्मदिन “गुरु नानक जयंती” या “गुरपुरब” के रूप में पूरे उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन लोग लंगर का आयोजन करते हैं, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं और सेवा का संकल्प लेते हैं।
गुरुद्वारों में जो लंगर चलता है, वह केवल भोजन नहीं, बल्कि एकता और समानता का प्रतीक है। यह वही भावना है जो गुरु नानक देव जी ने पाँच सौ साल पहले सिखाई थी — “सबका भला, सबका कल्याण।”
उनकी शिक्षाओं ने समाज को यह सिखाया कि सच्चा धर्म वह है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ दे।
निष्कर्ष – आज के समय में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं की प्रासंगिकता:-
गुरु नानक देव जी का जीवन एक प्रकाशस्तंभ की तरह है, जो आज भी अंधकार में डूबे मन को दिशा देता है। उन्होंने जो सिखाया, वह केवल पूजा या कर्मकांड नहीं था, बल्कि जीवन जीने का सच्चा तरीका था। उन्होंने कहा था — “सच्चा मनुष्य वही है, जो दूसरों के दुख को अपना समझे।”
आज के समय में जब दुनिया फिर से भेदभाव और असमानता से जूझ रही है, गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ हमें याद दिलाती हैं कि शांति का रास्ता प्रेम, समानता और सेवा से होकर ही जाता है।
उनकी वाणी हमें यह सिखाती है कि ईश्वर को देखने के लिए कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता।